छत्तीसगढ़राज्य

मुर्दाघर में 15 दिनों से रखे शव को दफनाने पर विवाद 

सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई में कहा- सौहार्दपूर्वक मामले को निपटाएं 

छत्तीसगढ़ । छत्तीसगढ़ के छिंदवाड़ा गांव में शव दफनाने को लेकर हुए विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को सुनवाई करते हुए कहा, कि सौहार्दपूर्वक समाधान के साथ ही उसे पादरी के सम्मानपूर्वक अंतिम संस्कार की उम्मीद है। उक्त शव 7 जनवरी से शवगृह में रखा हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने इसी के साथ अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।  
मृत पादरी के बेटे की याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीवी नागरत्ना और सतीश चंद्र शर्मा की डबल बैंच ने रमेश बघेल नामक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई बुधवार को की। उक्त याचिका में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई, जिसमें शव को गांव के कब्रिस्तान में ईसाईयों के लिए निर्दिष्ट जगह में दफनाने की उसकी याचिका का निपटारा किया था। इस पर सुनवाई कर रही डबल बैंच ने कहा, कि उक्त शव 15 दिनों से मुर्दाघर में रखा हुआ है, ऐसे में कोई समाधान निकालें और उक्त व्यक्ति को शव का सम्मानपूर्वक अंतिम संस्कार करने दें। इसी के साथ कोर्ट ने कहा कि सौहार्दपूर्वक मामले का समाधान होना चाहिए। 
छत्तीसगढ़ सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर अदालत में मौजूद सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता का कहना था कि उक्त शव का अंतिम संस्कार ईसाई आदिवासियों के लिए निर्दिष्ट क्षेत्र में ही होना चाहिए, जो परिवार के छिंदवाड़ा गांव से लगभग 20 से 30 किलोमीटर दूर स्थित है। इस पर बघेल की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोंजाल्विस ने कहा, कि राज्य सरकार का हलफनामा यह दावा करता है कि ईसाई आदिवासियों के लिए गांव से बाहर शव दफनाने की परंपरा है, जो कि झूठ है। इस बीच गोंजाल्विस ने गांव के राजस्व रिकॉर्ड के दस्तावेज भी पेश किए और कहा, कि ऐसे अनेक मामले हैं जिनमें समुदाय के सदस्यों को गांव में ही दफनाया गया। 
इस मामले को लेकर डबल बैंच ने आश्चर्य भी व्यक्त किया और कहा कि वर्षों से किसी ने भी दोनों समुदायों के लोगों को एक साथ दफनाने पर आपत्ति दर्ज नहीं कराई और अब अचानक क्या हुआ कि यह मामला सामने आया है। ऐसे में अदालत ने सुझाव दिया कि विकल्प के तौर पर पादरी के शव को उसकी अपनी निजी जमीन पर दफनाया जा सकता है, तो मेहता ने इस पर आपत्ति जताई और कहा, कि दफन केवल उसी स्थान पर ही होना चाहिए जो 20-30 किलोमीटर दूर निर्दिष्ट है। शीर्ष अदालत ने दोनों पक्षों की बातें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। 

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